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अन्योक्ति
जो कभी कुछ न सीख सकते हों।
दो चली सीख सब उन्हें सिखला॥
मात कर के न बात को मुँह तुम।
दो करामात बात की दिखला॥
जो किसी को कभी नहीं भाती।
है उसी की तुझे लगन न्यारी॥
क्यों लगी आग तो न मुँह तुझ में।
बात लगती अगर लगी प्यारी॥
प्यास से सूख क्यों न जावे वह।
पर सकेगा न रस टपक पाने॥
मुँह बिचारा भला करे क्या ले।
दाँत ऐसे अनार के दाने॥
मुँह पसीने से पसीजा जब किया।
तब अगर आँसू बहा तो क्या बहा॥
सूखता ही मुँह रहा जब प्यास से।
आँख से तब रस बरसता क्या रहा॥