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अन्योक्ति

आँसुओ और को दिखा नीचा।
लोग पूजे कभी न जाते थे॥
क्यों गॅवाते न तुम भरम उन का।
जो तुम्हें आँख से गिराते थे॥

हो बहुत सुथरे बिमल जलबूँद से।
मत बदल कर रंग काजल में सनो॥
पा निराले मोतियों की सी दमक।
आँसुओ काले-कलूटे मत बनो॥

था भला आँसुओ वही सहते।
जो भली राह में पड़े सहना॥
चाहिये था कि ऑख से बहते।
है बुरी बात नाक से बहना॥

नाक

हो उसे मल से भरा रखते न कम।
यह तुमारी है बड़ी ही नटखटी॥
तो न बेड़ा पार होगा और से।
नाक पूरे से न जो पूरी पटी॥