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अन्योक्ति
एक दिन था कि हौसलों में डूब।
गूँधती प्यार-मोतियों का हार॥
अब लगातार रो रही है आँख।
टूटता है न आँसुओं का तार॥
बेबसी में पड़ बहुत दुख सह चुकी।
कर चुकी सुख को जला कर राख तू॥
अब उतार रही सही पत को न दे।
आँसुओं मे डूब उतरा आँख तू॥
मत मटक झूठमूठ रूठ न तू।
मत नमक घाव पर छिड़क हो नम॥
अब गया ऊब ऊधमों से जी।
ऊधमी आँख मत मचा ऊधम॥
जा चुका हे वार सरबस प्यार पर।
तू उसे तेवर बदल कर कर न सर॥
दे दिया जिस ने कि चित अपना तुझे।
आँख चितवन से उसे तू चित न कर॥