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अन्योक्ति

चाहिये था पसीजना जिन पर।
लोग उन पर पसीज क्यों पाते॥
जब कि माथा पसीज कर के तुम।
हो पसीने पसीने हो जाते॥




तिलक

हो भले देते बुरे का साथ हो।
भूल कर भी तुम तिलक खुलते नही॥
किस लिये लोभी न टुम से काम लें।
तुम लहर से लोभ की धुलते नही॥

हो भलाई के लिये ही जब बने।
तब तिलक तुम क्यों बुराई पर तुले॥
भेद छलियों के खुले तुम से न जब।
भाल पर तब तुम खुले तो क्या खुले॥

क्यों नहीं तुम बिगड़ गये उन से।
जो तुम्हें नित बिगाड़ पाते है॥
किस लिये हाथ से बने उन के।
जो तिलक नित तुम्हें बनाते हैं॥