यह पृष्ठ प्रमाणित है।
९१
अन्योक्ति
है जिसे प्रभु की कला सब थल मिली।
पत्तियों में, पेड़ में, फल फूल में॥
ली नहीं जो धूल उन के पाँव की।
सिर! पड़े तो तुम बड़ी ही भूल मे॥
बात वह भूले न रुचनी चाहिये।
जो कि तुम को बेतरह नीचा करे॥
सिर! तुम्हीं सिरमौर के सिरमौर हो।
औ तुम्ही हो सिरधरों के सिरधरे॥
दे जनम निज गोद मे पाला जिन्हें।
क्या पले थे वे कटाने के लिये॥
खेद है सुख चाह बेदी पर खुले।
सिर ! बहुत से बाल तू ने बलि दिये॥
बाल मे सारे फुलेलों के मले।
सब सराहे फूल चोटी मे लसे॥
सिर! सुबासित हो सकोगे किस तरह।
जब बुरी रुचि-बास से तुम हो बसे॥