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अन्योक्ति


पाजियों के जब बने साथी रहे।
जब बुरों के काम भी तुम से सधे॥
क्या हुआ सिरमौर तो सब के बने।
क्या हुआ सिर! मौर सोने का बँधे॥

सिर और पाँव

जो बड़े हैं भार जिन पर है बहुत।
वे नही है मान के भूखे निरे॥
है न तन के बीच अगों की कमी।
पर गिरे जब पॉव पर तब सिर गिरे॥

लोग पर के सामने नवते मिले।
पर न ये कब निज सगों से, जी फिरे॥
दूसरों के पॉव पर गिरते रहे।
पर भला निज पाँव पर कब सिर गिरे॥

तोड़ सोने को न लोहा बढ़ सका।
मोल सोने का गया टूटे न गिर॥
पाँव ने सिर को अगर दी ठोकरे।
तो हुआ ऊँचा न वह, नीचा न सिर॥