पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/८८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चित्रशाला चलेगा? होंगे किसी बाजारवालं ही के । बाजार में पूछने पर शायद पताच जाय। - -- अचानक उसी समय उन्हें टस नौहर के सब्द बाद प्राप- "अाजकल वह समय है कि सोना-तुन्नी मुंह में रखकर काम करना बड़ा गधापन है।" यह ब्यान पाते ही उन्होंने सोचा-इस चटर में पड़ने से कोई लाम नहीं । ईश्वर ने ये हमीं को दिए है; नहीं तो मला दो हजार के नोट कहीं इस प्रकार मिलते हैं ? बेशक, ये हमारे ही भाग्य के हैं। यह ध्यान में श्राते ही उनका हृदय प्रसन्नता से भर गया। सोचे-चलो, भाग्य खुलाश्रय लाला की नौकरी छोड़ दंगे। यह सोचते हुए रामनजन नुशीनुशी ब्रले । योड़ी ही दूर चले थे कि उन्हें ध्यान पाया-नोट सौ-सौ रूपए के है, ऐसा न हो कि इनके नंबर उसझे पास लिखे हों। ऐसा हुअा, तो बड़ा घर देखना पड़ेगा । फिर ध्यान अाया-अभी-अभी दो करेंसी से लिए गए है; इतनी जदी यर कहाँ से लिख लिए होंगे ? यह सोचकर फिर बन्ने । परंतु इस कदम चलकर ही उन्हें एक युति सुन्नी । वह पुनः करेंसी की ओर लौट, और करेंसी में जाकर टन बीस नोटों में से दस निकाले, और उनके दस-दस रपए के नोट बदला लिए । नोटों का मुठ्ठा अपनी चदर में बांध लिया। जो इस नोट अपने मालिक के लिये लिए थे, वे भी उन्हों में मिला जिए । मिले हुए नोटों में से जो दस नोट शेष बचे थे, वे बाहर रख लिए । सोचे- ये नोट मालिक को दे देंगे। अगर पकड़े मी गए, तो टन पर पड़ेगी, हम अलग रहेंगे । हमारे पास एक हजार के तो दस-दस के नोट है, और एक हजार के सौ-सौ के-के सौ-सौ के, जो हमने स्वयं मालिक के लिये लिए थे। इसलिये हमें तो अब कोई पूछ नहीं मित नोटों में से दम तो करेंसी में ही लौट गए, और दस हमारे मालिक के पास पहुँच जायेंगे । यल, अानंद है। सकता।