संतोप-धन . a नौकर-तो दस-पाँच रुपए के लिये मंदा है ? तुम भी वही पोंगे- 'पन की बातें करते हो ! इतने पुराने नौकर, और इतने नमकहलाल! तुम्हें दस-पाँच रुपए देने के लिये लाला महंगे नहीं हैं। ये सब न देने की बातें हैं। रामभजन र चाहे जो हो । उनकी इच्छा ! हम अधिक तो कुछ कह सकते नहीं। नौकर--माँगने से कहीं कुछ मिला है ? रामभजन-माँगने से नहीं मिलता, तो न मिले; हमसे चोरी- द्गायाजी नहीं हो सकती। (३) उपर्युक्त घटना हुए एक मास व्यतीत हो गया। एक रोज़ लाला हजारीमल ने रामभजन को हजार रुपए दिए, और कहा-जाओ, करेंसी से सौ-सौ रुपए के दस नोट ले पायो। रामभजन थैली कंधे पर रखकर करेंसी पहुँचे। वहाँ से नोट लिए। नोट लेकर सिर सुकाए धोरे-धीरे दूकान की ओर चले । करेंसी से जब कुछ दूर निकल पाए, तो उन्हें सड़क पर एक छोटा-सा पैकट पड़ा हुआ दिखाई दिया। रामभजन ने उसे ठुकराया-समझे, कोई रद्दी काग़ज़ का गोला पड़ा है। लात लगने से उन्हें ज्ञात हुआ कि तागा बंधा है। उठा लिया । उठाकर एक वृक्ष की छाया में पाए। श्राकर उसे खोला, तो देखते क्या हैं कि उसमें सो-सौ रुपए के बीस नोट हैं। बिलकुल ताजे थे । जान पड़ता था, कोई व्यक्ति करेंसी से लेकर चला थां; रास्ते में उसकी जेब से गिर गए। यह देखकर रामभजन कुछ देर तक मूर्ति की तरह खड़े रहे। सोचने लगे-ये किसके नोट हैं ? रास्ते में कोई भादमी जाता भी दिखाई न पड़ा, नहीं तो मैं पुकारकर दे देता, अब इन्हें क्या करूं? जिसके ये नोट हैं, उसे कहाँ ढूँढें । इतना बड़ा शहर है, कहाँ पता
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