चित्रशाला राममनन-अम्माँ, जरा और ठहर जायो, कहीं से रुपए मिलें, मुंडन हो, विना पैसे-रुपए के कैसे होगा ? माता-चार-पांच रुपए लगेंगे, कुछ सौ-पचास का खर्च नहीं है। रामभजन-इस समय तो चार-पाँच रुपए भी मिलने कठिन हैं माता-यह दशा तोनदा ही रहेगी, यह काम भी तो करना ही है। राममनन-बैर, जो ऐसी ही जल्दी है, तो तनख़्वाह मिद्धने दो, कर ढालना। माता-अपने मालिक से क्यों नहीं कहते ? वह चार-पाँच रुपए दे सकते हैं। रामभजन-चार-पाँच क्या, वह चाहें, तो नौ-पचास दे सकते है, पर अाजकल ब्राह्मणों को देने की अद्धा लोगों में नहीं रही। वाहि.. चात कामों में लोग हजारों खर्च कर डालते हैं। माता-इलजुग है न ! कजा में गऊ-ब्राह्मए का मान नहीं रामभजन-कलयुग क्या, अपना नसीब है, हमारे तो नसीब ही में दरिद्र भोगना लिखा है ! राममनन जिनके यहाँ नौल थे, टनके यहाँ कपड़े का काम होता था। दूचान का नाम जोतमन इजारीलाल पड़ता था। रामनजन अधिकतर तकाजा वसूत करने का काम करते थे। हजारों लए नित्य राममजन के हायों से निकलने थे । वह ईमानदार प्रथम श्रेणी के थे, इसीलिये टन मालिकों का टन पर पूर्ण विश्वाल था । बाज़ार के अन्य लोग भी टनकी ईमानदारी के कारण उनका श्रादर करते थे। जिस दिन राममनन को वेतन मिला, उस दिन उन्होंने
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/८२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।