पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/७८

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संतोप-घन पं० राममान एक तरीय बालग । पंद्रह सपए मासिक पर एक महाजन के यहाँ नौकर है। दो-चार पर मासिक ऊपर मे,दान- पुण्य , मिल जाता है। इस प्रकार केवज्ञ योस रुप मासिक में वह अपना परिवार जिलाते हैं। उनके परिवार में पांच वाली है-वर, उनकी पनी, टन्की मासा, और दो पुत्र । एक पुत्र की अवस्था इस वर्ष के लगभग है और दूसरे की चार वर्ष के लगभग । ऐसे महँगी के समय में बीस रुपए मासिक में पनि प्राणियों का भरण-पोषण किस प्रकार होता होगा, यह बात श्रीमानों की समझ में कठिन्ना से पा सकती है। दोनों समय रोटी-दाल के अतिरिक्त और कोई वन्त उन्हें नसीब नहीं होती । कमी-कमी दही में कोई सीधा मिल गया, तो मानों संपनि मिल गई; कहीं से की चार पैसे मिल गए, तो मानों चार सए मिले। इस प्रहार पं० रामभजन अपना परिवार चताते हैं। रात का समय या। पं० राममजन अपनी नौकरी पर से लौटे थे, और भोजन इत्यादि से निवृत्त होकर अपनी ही चारपाई पर पढ़े हुए थे। उसी समय टनका छोटा पुत्र लल्लू टनके पास पाया। रामभजन ने टसे अपने पाम लिटा लिया, और टसे प्यार करने लगे। उनका संतप्त हृदय थोड़ी देर के लिये प्रफुल्लित हो गया। उनके अंधकारमय जीवन में ज्योति की केवल दो रेखाएं यों, वे रेसाएँ टन के दोनों पुत्र थे । उनका मुख देखकर और उन पर अपनी अनेक मावी श्राशाओं को प्रवलंबित करके राममजन थोड़ी देर के लिये अपने