चित्रशाला इसके पश्चात् सब लोग सो रहे । कोई अनाव के पास ही दबक- कर लेट रहा, कोई अपनी मडया में चला गया । रामलाल की कन्या भी अनाव के पास पुनः सो गई। परंतु रामनाल ? रामकान अलाव के पास बैठा ही रहा। रात भर यह अग्निदेव पर दृष्टि जमाए बैठा अनेक बातें सोचता रहा । टसे रह-रहकर भिक्षुक के चे शब्द कि "कल को लड़की सयानी होगी तो उसका व्याइ कहाँ से करोगे?.........भिखारी की बिटिया से कौन व्याह करेगा ?...... भिखारी की बिटिया का तो यह ही हो सकता है कि कोई भिखारी बैठाज ले, या कोई......।" इसके धागे के शब्दों की पना जब रामलाल करता था तव उसका खून टवक्षने लगता था । और जिस समय उसे भिक्षक के ये शब्द याद अाते थे कि "तुम्हारे साथी. सैकड़ों की बहन-विटिया गली-गली.. उस समय वह अपनी अलाव के पास पड़ी हुई कन्या पर एक दृष्टि डालता था। अग्नि की क्षीण ज्योति पढ़ने के कारण पन्या का रक्तरंजित सुंदर तथा भोला मुख, जो निद्रा में मग्न होने के कारण और भी अधिक प्रयोव और पवित्र हो गया था, उसके हृदय में अशांति की ऐसी विक्ट याना टरपन्न करता था कि जिसके सामने बाहर लड़कियों के ढेर पर नृत्य करती हुई ज्वालाएँ नितांत तुच्छ प्रतीत होती थीं । टस समय उसके अंतस्तल से एक आवाज़ उठती थी कि "रामलाल, तू जिसे इतना अधिक प्यार करता है कि उसके लिये अपने प्राण तक दे देने को तैयार है, उसके भविष्य के लिये तु क्या कर रहा है ? क्या तू टसे भी, अपनी तरह भिखारिणी बनाकर अपने पीछे गलियोनालियों की ठोकरें खाने के लिये छोड़ जाना चाहता है ? क्या यही तेरा स्नेह है, क्या यही सेरा वात्सल्य है ? भिक्षुक की बातें तुझे कटु भले ही लगी हों; पर उनमें तेरे लिये चेतावनी और तेरी कन्या के लिये भविष्यवाणी छिपी हुई है।" .
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/६२
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