प्रेम का पापी अच्छा है, चले जाओ, चेतन अच्छा मिल रहा है, ऐसा अवसर क्यों खो रहे हो? परंतु श्यामाचरण ने यही उत्तर दिया कि मैं अकेला आदमी हूँ, मेरे लिये डेढ़ सौ ही यथेष्ट है। बाहर मुझे तुम्हारा-सा मित्र कहाँ मिलेगा? यह मैं मानता हूँ कि मैं चाहे कहीं भी रहूँ, मेरी-तुम्हारी मित्रता में कभी फर्क नहीं पड़ सकता ; पर मित्रता से जो सुख तथा प्रानंद मिलता है, वह तो दूर रहने पर नहीं मिल सकता। चमेली के विवाह में श्यामाचरण ने खूब परिश्रम बिया । एक दिन मोहन ने उनसे कहा-तुम इतना परिश्रम क्यों करते हो? एक तो यों ही दुर्वल हो रहे हो, स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उस पर इतना परिश्रम करते हो। परंतु श्यामाचरण ने मोहन की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। चमेली का विवाह सकुशल हो गया। चमेनी के ससुराल चले जाने के दो दिन बाद श्यामाचरण ने मोहन से कहा-कहो, तो मैं भी कुछ दिनों के लिये थाहर घूम पाऊँ । जरा बाहर का जल-वायु! मिले, तो शायद स्वास्थ्य कुछ ठीक हो जाय। मोहन-बड़ी अच्छी बात है। कहाँ जानोगे ? श्यामाक -हरद्वार जाने की इच्छा मोहन:-अच्छी बात है । स्थान अच्छा है, जल-वायु भी अच्छा है । वहाँ कितने दिन रहोगे? श्यामा०-स्कूल खुलने तक वहीं रहूँगा। आठ जुलाई को स्कूल खुलेगा। मैं च-सात तारीख तक आ जाऊँगा। मोहन-अच्छी बात है। (३) चमेली का विवाह हुए छः मास व्यतीत हो गए । श्यामाचरण का स्वास्थ्य दिन-दिन बिगढ़ता ही गया। यद्यपि मोहनलाल बराबर है
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