पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/४७

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प्रेम का पापी ३ मोहन:-तुम विवाह कर मलो । विना पनी के सुख नहीं मिलता। विवाह का नाम सुनते ही श्यामाचरण का चेहरा कुछ उदास हो गया। उन्होंने एक दबी हुई लंबी साँस छोड़ी। मोहन०-क्यों, विवाह का नाम सुनकर तुम उदास क्यों . हो गए? श्यामाचरण अपने को संभालकर, मुँह पर जवरदस्ती मुसकिराहट नार, बोले-नहीं, उदास होने की तो कोई बात नहीं है। मोहन-नहीं जी, कुछ बात तो अवश्य है। श्यामा०-नहीं, बात कुछ भी नहीं है। मोहन..--तो फिर विवाह क्यों नहीं करते? श्यामा० -अभी विवाह करने की इच्छा नहीं है। मोहन०-क्यों? श्यामा० -ऐसे ही। मोहन०-वाह ! अच्छी ‘ऐसे ही' है । कोई कारण 'तो अवश्य होगा। श्यामा०- भी नहीं है मोहन-कोई बात तो अवश्य है । तुम मुमसे उसे छिपाते हो । नब से मेरी-तुम्हारी मित्रता हुई, तब से मैंने कई बार तुमसे विवाह कर लेने के लिये कहा। पहले तो दो-चार वार तुमने मेरी बात पर ध्यान दिया था, और विवाह करने की इच्छा भी प्रकट की थी, परंतु इधर कुछ दिनों से विवाह का नाम सुनते ही तुम कुछ अप्रविभ-से हो जासे हो । क्या बात है ? श्यामा०--तुम तो बाल की साल निकालने लगते हो। कह तो रहा हूँ, कारण केवल यही है कि अभी मेरी विवाह करने की इच्छा नहीं है, फिर भी तुमको विश्वास नहीं होता। -महीं, कारण कुछ