चिनशाना जाति के खत्री हैं। पढ़े-लिखे योग्य श्रादमी हैं । एक लिमिटेड पनी में दो सौ रुपए मासिक वेतन पर काम करते हैं। श्रापके परिवार में इस समय आपके अतिरिक्त आपकी परनी, एक क्वाँरी वहन, प्रापकी माता, तथा एक पुत्र है, जिसे संसार में धाए श्रमी केवल एक मास हुआ है। सेकिंड मास्टर रविवार का दिन था। प्रावू मोहनलाल अपने कमरे में बैठे थे। उसी समय एक युवक घाया। उसे देखते ही मोहनलाल कह उठे- आयो भाई श्यामाचरण, कहाँ रहे ? यह नवयुवक वही था, जिसने बरेली स्टेशन पर मोहनलाल का प्रसयाय पैसेंजर ट्रेन में पहुँचाया था। उसी दिन से दोनों में घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। श्यामाचरण ने एम० ए० पास किया था। अब वह एक हाईस्कूल में, १२०) मासिक वेतन पर, थे। श्यामाचरण सारस्वत ब्राह्मण और अविवाहित थे। अपने परिवार में अकेले ही थे। उनके पिता का देहांत उस समय हो गया था, नत्र उनकी अवस्या देवल सोलह वर्ष की थी। नव वह बीस वर्ष के हुए, तब माता भी परम-धाम को बल दी। वैसे बनारस में उनके चाचा- ताऊ इत्यादि रहते थे, पर श्यामाचरण टन सब से अलग, लखनऊ में, आनंद-पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। श्यामाचरण मोहनलाल के पास बैठ गए । मोहन बाबू ने पूछा- अाज कन नुम दुबले बहुत हो रहे हो । क्या कारण है ? स्यामाचरण ने मुसकिराकर कहा--सत्र ? मैं दुबला हो गया हूँ ? मोहन०-वाह, इसमें भी कोई मजाक की बात है ? श्यामाचरण-मुझे तो नहीं मालूम होता कि मैं दुबला हो रहा हूँ । मोहन.-तुम्हें क्या मालूम होगा। श्यामा -प्राजकन्न गरमी अधिक पढ़ रही है, इसी कारय कुछ खाया-पिया नहीं जाता।
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