प्रेम का पापी पत्नी ने कहा . - , - भोलेपन के साथ उक्त यास कही, तो उन महाशय को कुंछ-कुछ विश्वास हो गया। वह बोले-नहीं विश्वास क्यों नहीं है। मैं यह सोच रहा हूँ कि आपको क्यों कप्ट हूँ। 'मुझे कोई कष्ट नहीं' कहकर नवयुवक ने तुरंत अपना छाता प्लेट- फार्म पर डाल दिया और झट एक ट्रंक उत्ताकर कंधे पर रख लिया, और लेकर चल दिया । वह महाशय मुँह ताकते रह गए। -न-जाने कौन है, कौन नहीं । वाह ! तुमने मना भी नहीं किया ? कौन ऐसी जल्दी पड़ी है, रात को चले चलेंगे। श्ररे उसके पीछे जाओ, उस टूक में मेरे और चमेली के गहने हैं तुम्हारी तो जैसे सिट्टी-पिट्टी भूली हुई है। जल्दी दौड़ो, कहीं लेकर चल न दे। पर पति महाशय ने भी दुनिया देखी थी। उन्होंने कहा-तुम तो सब को चोर ही समझती हो। यह कोई शरीफ़ श्रादमी है। ऐसा कभी नहीं कर सकता कि लेकर चल दे। यद्यपि उन्हें विश्वास था कि नवयुवक कोई भला आदमी है, तथापि उनका हृदय धड़क रहा था। ईश्वर पर भरोसा किए चुपचाप खड़े देखते रहे । थोड़ी देर में नवयुवक लौट आया, और दूसरा ट्रंक ले गया। वह महाशय पत्नी से बोले--तुम समझती थी, चोर है। जो चोर होता, तो लौटकर आता ? पत्नी ने कुछ उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर में नवयुवक फिर लौट श्राया, और तीसरा ट्रंक भी उठाकर ले चला। इस बार उक्त महाशय ने बिस्तर का पुलिंदा उठाकर अपने कंधे पर रख लिया, और अपनी पत्नी तथा वहन को साथ लेकर नवयुवक के पीछे चले । (२) उपर्युक्त घटना को हुए छः मास व्यतीत हो गए। ऊपर जिन महाशय का हाब लिखा गया है, उनका नाम मोहनलाल है। श्राप
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