पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/४४

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चित्रशाला नवयुवक-श्राप कहीं जायेंगे? वह-जयनऊ। नवयुवक-लखनऊ तो मैं भी जा रहा हूँ। गादी प्राध बंटे में छूट जायगी। वह महाशय विषाद-पूर्ण स्वर से बोले- क्या करें, मजबूरी है । उसी समय पैसेंजर के मुसाफिर श्राफर मेन-ट्रेन में भरने लगे। नवयुवक कुछ देर तक खड़ा सोचता और टन महाशय के अस. वार की ओर देखता रहा। तत्पश्चात् बोला-मैं श्रापका असमान पहुँचा दूंगा । श्राप यहाँ स्त्रियों के पास खड़े रहें, मैं एक-एक करके सब चीजें पहुँचाए देता हूँ। मेरे एक मित्र वहाँ बैठे हैं । उनको अस- बाम ताकने के लिये खड़ा कर दूंगा । वह वहाँ रहेंगे, श्राप यहाँ रहिए, और मैं सब चीजें पहुँचा दूंगा। वह महाशय कुछ मुसकिराकर बोले- इस सहानुभूति के लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; परंतु श्राप क्यों कष्ट करेंगे, मैं दूसरी गाड़ी से चला पाऊंगा। नवयुवक-दूसरी गाड़ी कहीं रात को जायगी, तब तक श्रार यहाँ पड़े रहेंगे? बढ़ी तकलीफ होगी ! टन महाराय ने कहा-जी हाँ, तकलीफ तो होगी ही; पर क्या छिया जाय? नवयुवक-तो आप तकलीफ़ क्यों टठाने ? मैं जब असबाब ले जाने के लिये तैयार हूँ, तव अापको क्या आपत्ति है ? यह विश्वास रखिए, मुझे जरा भी कष्ट न होगा । शरीर में यथेष्ट बल है। हाँ, एक बात अवश्य है। यदि आपको मुझ पर विश्वास न हो, दूसरी बात 'बात भी यही थी। वह महाशय यही सोच रहे थे कि कौन जाने यह कौन है। उठाईगीरे और ठग भी प्रायः भन्ने प्रादमियों के देष , में रहते हैं। परंतु जब नवयुवक ने बहुत निर्भीकता पूर्वक तच 1 है ।