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सुधार है भी खयाल है, दो-तीन बार सचेत किए जाने पर न करेंगे । जब त मनुष्य की आँखों का पानी नहीं ढलता, तब तक वह सरलता- पूर्वक सुधर सकता है, तु आँखों का पानी ढल जाने से उसका सुधार बड़ा यठिन हो जाता शिवकुमार-यह कैसे मान लिया जाय कि इसकी आँख का पानी नहीं ढला । राधाकांत-इसलिये कि इसका पाप प्रकट नहीं हुआ । जब तक मनुष्य का पाप छिपा रहता है, तब तक उसकी आँखों का पानी नहीं ढलता, परंतु जब उसका पाप लव पर प्रकट हो जाता है, तब उसकी आँखों का पानी ढल जाता है और ऐसे प्रादमी का सुधार कठिन हो जाता है। केवल एक यही बात कि "हमारे पाप को सब लोग न जान जॉय" मनुष्य को आगे के लिये पाप करने से रोकती है। शिवकुमार-हाँ यह ठीक है और यह मैं मानता हूँ कि इस युक्ति से अधिकांश सफलता मिल सकती है। .