PS निशाना । राधाकांत-पापने इस संबंध में क्या करना निश्चय किया है ? शिवकुमार-मैने अभी कुछ निश्चय नहीं किया, 'याप ही निश्चय कीजिए राधाकांत -अच्छा कल चलेंगे। दूसरे दिन शिवकुमार और राधाकांत स्टेशन पर पहुँचे । मुसाफिरों के टिकिट लेते समय जो बात वाचू शिवकुमार ने कही थी. यही देखने में श्राई। ये दोनों खड़े चुपचार देखते रहे। जब किसी-न-किसी प्रकार सब मुसाफिर टिकिट लेकर चले गए और गादी छूटने में केवल पांच मिनिट रह गए, तब पं० राधाकांत ने अपने नौकर को एक दूर के स्टेशन का टिकिट लेने के लिये भेजा और स्वयं खिड़की से कुछ दूर पर खड़े हो गए। नौकर सिखाया-पदाया था। उसने खिड़की के पास जाकर घबराहट दिखाते हुए उक्त स्टेशन का टिकिट माँगा। बाबू ने विगड़कर कहा-धभी तक क्या. सोते थे। रेल क्या तुम्हारे बाप की नौकर है, जो तुम्हारे लिये खड़ी रहेगी ? जाश्रो टिकिट नहीं मिलेगा। नौकर ने बड़े दीन भार में कहा-बाबूजी, बड़ा ज़रूरी काम है। रेल न मिलेगी, तो मर जायँगे । दे दीजिए, भगवान् श्रापका भला करेगा। बाबू-जरूरी काम है, तो दूना महसूल देना पड़ेगा। नौकर-दूना महसूल ! बाबू-हाँ दुना। नौकर तो सिखाया-पढ़ाया था ही उसने पहले कुछ आपत्ति करने के पश्चात् दूना किराया दे दिया और टिकिट लाकर राधाकांत - -- को दिया। राधानांत टिकिट लेकर खिड़की पर पहुँचे और वाव से बोले- क्यों साहय, इसका श्रापने दूना किराया क्यों चार्ज किया?
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