सुधार , शिवकुमार-क्या कहूँ, मैं तो स्वयं लजित हूँ। पर इतना मैं 'अवश्य कहूँगा कि इसके अतिरिक्त और कोई उपाय भी नहीं था। राधाकांत खैर, यह तो अवसर पड़े मालूम होगा । अच्छा, श्रय एक काम कीजिएगा। अब यदि कहीं कोई ऐसा मामला मिले, तो मुझसे परामर्श ले लीजिएगा। शिवकुमार-वश्य, मुझे भी देखना है कि श्राप किस प्रकार गाँठ को विना काटे हो सुलझाते हैं। - बाबू शिवकुमार राधाकांत से बोले-दो महीने पूर्व प्रापने मुझसे कहा या कि यदि कोई रामधन का-सा स मिले, तो मैं आपसे परामर्श ले लूंगा। राधाकांत-हाँ, कहा था। शिवकुमार-वैसा ही एक मामला है। राधाकांत-कहिए। शिवकुमार--स्टेशन पर थर्ड क्लास के चुकिंग क्लर्क (टिकिट बाँटनेवाले बाबू ) मुसाफिरों को बहुत तंग करते हैं। जो कुछ नज़र दे देता है, उसे तो तुरंत दिकिट दे देते हैं जो नहीं देता, उसे नहीं देते। कभी कह देते हैं, रुपया वरात्र है, इसे बदलो । भी कह देते हैं. पैसे नहीं है, रुपया तुड़ा लायो । बाबुनों से कांस्टेविता भी मिले हुए हैं। कोई मुसाफ़िर उनसे शिकायत करता है, तो कह देते हैं कि "हम क्या करें ? बाबू को कुछ दे दो, टिभिट मिल जायगा।" वेचारे मुसाफिर ट्रेन छूट जाने के डर से उन्हें कुछ-न-छ पूजकर टिकिट ले लेते हैं। राधाकांत-क्या सबके साथ यही व्यवहार करते है ? शिवकुमार-सबके साथ तो भजा क्या कर सकते हैं। हाँ, वे पढ़े गरीव भादमियों और देहातियों के साथ करते हैं। .
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