सुधार R . एक को कष्ट से बचाया जाय और दूसरे को कष्ट में डाल दिया जाय ? देश-भक्त के लिये तो सब बराबर हैं। उसे तो सबके कष्टों का ध्यान रखना चाहिए। शिवकुमार--यह तो एक खास केस ऐसा प्रा पड़ा कि रामधन के परिवार का पालन-पोपण करनेवाला कोई दूसरा नहीं, परंतु सव हालतों में तो ऐसा नहीं होता। राधाकांत--यह माना । परंतु उन हालतों में भी मानसिक कष्ट अवश्य होता है। जिसका बाप, भाई या पति जेल जायगा, उसे मानसिक कष्ट तो अवश्य ही होगा~यह आप मानते हैं या नहीं ? शिवकुमार-हाँ, मानूंगा क्यों नहीं, पर इसके अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं। राधाकांत-पाप एक देर रामधन को समझाकर, 'धमकाकर, इस अनुचित काम से रोकने की चेष्टा करते । शिवकुमार--पोहो ! यही तो आप जानते नहीं, इसीलिये आप ऐसा कहते हैं। ऐसे आदमी न समझाने से मानते हैं, न धमकाने से । यदि डर से मान भी गए, तो कुछ दिनों के लिये । जहाँ उन्हें यह निश्चय हो गया कि कोई कुछ करे-धरेगा नहीं, बस, फिर वही काम करने लगते हैं। राधाकांत-यदि गाँठ कुछ परिश्रम से खुल सकती है, तो उसे काट डालना कभी उचित नहीं। शिवकुमार--पर खुले जब न ? राधाकांत-खुल सकती है। फारसी में एक कहावत "लुत्फ कुन लुत्फ कि बेगाना शवद, हल्कः बगोश ।" इसका यह अर्थ है कि नी और सद्व्यवहार से गैर भी अपने हो जाते हैं । शिवकुमार- यह कहावत रामधन-ऐसे लोगों पर लागू नहीं हो सकती।
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