पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/३२

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सुधार ? वाचू शिवकुमार के मित्र पं० राधाकांत ने उनसे पूछा- कहो, उस केस में क्या हुआ शिवकुमार बड़े अभिमान-पूर्वक बोले-हुश्रा क्या, सज़ा दिलाके छोड़ा। मैंने तो प्रण कर लिया है कि ऐसे अत्याचारियों को ढूंढ-ढूंढ- कर जेल भिजवाऊँगा। राधाकांत-क्या सज़ा मिली ? मार-छः महीने की कैद और पचास रुपए जुर्माना । राधाकांत-जुर्माना दाखिल हो गया ? शिवकुमार-हाँ, दाखिल हो गया। यार उसके घर में तो भूजी भांग भी न निकली । इतनी रिश्वतें लेते हैं, पर न-जाने वह सब कहाँ चली जाती हैं। उसकी स्त्री ने अपने प्राभूपण बेंचकर जुर्माना दाखिल किया । . राधात-उसकी ओर से पैरवी अच्छी नहीं हो सकी ? शिवकुमार-पैरवी करनेवाला था कौन ? एक बूढ़ा पाप है, जो चल-फिर भी नहीं सकता। एक स्त्री है और दो बच्चे। राधाकांत-और कोई नहीं है ? शिवकुमार-और कोई नहीं। राधात के मुख पर मलिनता दौड़ गई । उन्होंने सर झुका लिया ! बड़ी देर तक सर झुकाए चुपचाप बैठे रहे । शिवकुमार बोले- अब बच्चा सदैव के लिये ठीक हो जायेंगे। राधाकांत ने सर उठाया । कुछ क्षण तक शिवकुमार की ओर देखकर बोले-नापने यह काम क्यों किया? शिवकुमार-क्यों किया? किया देश-भक्ति के नाते, अपने भाइयों को अत्याचार से बचाने के लिये । पं. राधाकांत मुसकिराय। उस मुसकिराहट में कुछ घृणा थी, कुछ अविश्वास था । शिवकुमार यह बात ताड़ गए। प्रतएव बोले- क्यों, आप मुसकिराए क्यों? . ,