पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/३१

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चित्रशाला
 

२२ चित्रशाला चितदिन का ? दो चार दिन काम का हर्ज होगा, पर यह तीसों दिन का पट्राग तो मिट नायगा । और, इस बात का हम ज़िम्मा लेते हैं कि तुम्हारे ऊपर ज़रा भी आँच नहीं आने पाएगी। गाड़ी...यह तो ठीक है, पर- बाबू०--तुम लोग इसना डरते हो, इसीलिये तो यह सब बातें बढ़ती जाती हैं। हम नहीं समझते कि इसमें डरने की क्या बात है। तुम्हें केवल इतना काम भरना होगा कि जो कोई अफसर पूछे, तो ये बातें सब कह देना। गाड़ीवाले ने अपने साथियों की ओर इशारा करके कहा-यह सब राजी हों, तो हम भी राजी हैं। याव० -यह तो राजी हो ही जायेंगे, नहीं तो तुम उन्हें राजी करने की चेष्टा करो। अच्छा तुम्हें बाजार से कर छुट्टी मिल जायगी ? गाढ़ी-यही कोई ग्यारह-बारह बजे तक। बाबूल-किस शादत में ले जायोगे? गाढ़ीवाले ने एक पादत दूकान का नाम बताया। वायू साहव ने बहुन समझा-बुझाकर दस-बारह गाड़ीवानों को राजी किया और उनले मजिस्ट्रेट की अदालत में इस्तगासा दिलवा दिया कि धुंगी के बाबू ने उन्हें संग किया, विना काम रोड रक्खा और सबसे प्राठ-ग्राउ श्राने रिश्वत लेकर तब उन्हें रमीददी। चुंगी छर्क पर मुकदमा कायम हो गया। बाबू शिवकुमार ने अपनी गवाही लिखाई थी। इसके अतिरिक्त गाड़ीवानों ने भी अपने गाँव के तया नास-पास के चार-छः श्रादमियों की गवाहियाँ लिवाई थीं। उचित समय पर बुंगो-क्लर्क रामधन का विचार हुा । रामधन से सफाई.मांगी गई पर वे रचित सफाई न दे सके । अतएव उन्हें यः मास की कंद तथा पचास रुपए जुर्माने का दंड मिना ।