सुधार . . सोचा कि यहाँ पढ़े रहने से बढ़ा हर्जा होगा, दो-चार आने सम खायो । खैर, हमने पाठ-साठ थाने दिए और बहुत हाथ-पैर जोड़े, तप कहीं वे रसीद देने पर राजी हुए। बाबूल-रसीद मिल गई ? गाड़ो०-हाँ, अभी दी है। वापूर-और यह लोग क्या क्या करते हैं ? गाड़ी-करते तो साहब न जाने क्या क्या है, पर हमें जल्दी है, बाजार का समय है। बाबू..चलो, हम भी तुम्हारे साथ-साथ चलते हैं। हाँ, जो-जो यह करते हों, हमें सब बतायो। गाड़ीवालों ने गाड़ियाँ हाँकी । बाब साहब भी साथ-साथ चले । गाड़ीवाले ने कहना प्रारंभ किया-गाड़ी-पीछे दो-चार सेर जिनिस (माल) निकाल लेना तो कोई बड़ी बात नहीं, यह तो सभी के साथ करते हैं। जो कोई नहीं देता उसे बहुत दिक करते हैं, चुंगी अधिक लगा लेते हैं, गालियाँ देते हैं। कभी-कभी मार मी बैठते हैं। बाबू -और तुम लोग यह सब सह लिया करते हो? गाड़ी-सहें न तो क्या करें ? एक दिन की बात हो तो न सहैं। हमारा तो इधर आना-जाना लगा ही रहता है। वैर बाँध, तो और भी दिक करें, इससे ग़म खाते रहते हैं। बाबु-यदि तुम लोग हमारी सहायता करने को कहो, तो हम इन्हें मजा चखा दें। गाड़ी०~-अरे साहब, कौन मांझट में पड़े । अदालत जाते योही उर लगता है । काम का हर्जा करें, दौड़े-दौड़े फिरें, और जो कोई उलटी-सीधी बात पड़ गई, तो उलटे ही मारे जाय । बाबू-एक-दो दिन काम का हर्जा करना अच्छा कि तीसों O 4
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