पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/२९

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चित्रशाला

mo चित्रशाला साहस कर जानो, वो तुम लोगों का यह दुःख सदैव के लिये दूर हो जाय। अपने लिये नहीं, तो अपने उन सैकड़ों भाइयों इलिये, लिन्हें इसी प्रकार की सुसीबतें झेलना पड़ती है, तुम्हें यह झाम अवश्य करना चाहिए। थोड़ी देर के लिये मान लिया जाय कि तुम्हॉयह नहीं अखरता, परंतु तुम्हारेले अनेक भाई ऐसे हैं, जिन्हें इससे बड़ा दुःख होता होगा। गाहीशला कुछ टत्तेजित होकर बोला-बाबूजी अरखता क्यों नहीं, हमें भी जैसा अखरता है वह हमी जानते हैं। पर क्या करें, कलेजा मसोसकर र६ जाते हैं। किससे कहें ? कोई सुननेवाला भी तो हो ? बाबू साहन्द--इसीलिये तो हम कहते हैं कि नुम सब झाल हमसे कहो, फिर देखो हम क्या करते हैं। गादीवाला बोला-बात यह है कि हम सबेरे चार बजे से यहाँ पढ़े हैं। अब सात-पाठ बजे होंगे। सवेरे हमने चुंगी के वायू से कहा कि चुंगी ले लो और रसीद दे दो, हमें जल्दी है। बाजार के समग्र पहुँच जायेंगे, तो आज ही छुट्टी मिल जायगी, नहीं कल तक पड़ा रहना पड़ेगा। बाबूजी, आप जानते हैं कि आजकक्ष फसल के दिन है, यहाँ पड़े रहने में हर्ज होता है। चुंगी के बाबू बोले, श्रमी ठहर जाम्रो, हमें छुट्टी नहीं है। हम थोड़ी देर रुक गए । बाबू साहब को कोई काम नहीं था, मज़े से बैठे बातें कर रहे थे । योड़ी देर में हमने फिर कहा, तो डॉटकर बोले-यमी रसीद नहीं मिलेगी । हमने हाथ- पैर जोड़े, तब बोले, लन्दी है तो कुछ नजराना दिलायो, नहीं तो दस बजे तक पड़े रहो, दस बजे के पहले नहीं जाने पायोग। र साहब, हमने चार प्राने दिए, पर चार पाने में राजी न हुए, एक रुपया मागने लगे। अब आप ही बताइए, हम गरीब आदमी एक रुपया अहाँ से लावें । मुंगी अलग दें और इन्हें अलग है। बैर, हमने कहा कि एक रुपया तो हम नहीं दे सकने । इस पर वे विगड़कर कहने लगे कि नहीं दे सकते तो जाओ, जाके बैठो वहीं । तब इमने - 1