पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/२७

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सुधार
(१)

सुधार (१) या शिवकुमार बड़े देश-भक्त थे। उसमें देश भक्ति की मात्रा उस सीमा तक पहुंची हुई थी, जिसे कुछ लोग शनधिमारनेष्टा कहते हैं। उनका एक कार्य यह था कि वे प्रायः इस खोज में घूमा करते थे कि उनके भोले-भाले 'पौर निःसहाय भाइयों पर सरकारी कर्मचारी अत्याचार तो नहीं करते। यदि उन्हें कोई ऐसा मामन्ता मिल जाता, तो चे पर्मचारियों को बानूनी शिकंजे में लेकर उन्हें पूरा दंड दिलाने की चेष्टा किया करते थे। उन्हें कभी-कभी इस कार्य में सफलता भी होती थी। एक दिन बाबू साहब प्रातःकाल घूमने निकले और शहर के बाहर की घोर चले गए। बाबू साहम प्रातःकान की मंद-मंद वायु का श्रानंद लेते चंगीघर के निकट पहुंचे । चुंगीघर के सामने छः-सात अनाज की देहाती गाड़ियाँ, जो शहर की ओर पा रही थीं, दी थीं। बाबू साहय गादियों के पास से होकर जा रहे थे, उसी समय उनके कान में एक देहाती के ये वाक्य पढ़े-~~-"अरे भाई, फिर क्या किया जाय, जबर मारे और रोने न दे, दें न तो क्या करें ? दो-चार याने की खातिर यहाँ बारह बजे तक भूखे-प्यासे पड़े रहें ? काम का हरजा करें ? देना ही पड़ता है । कहें भी, तो किससे गरीबों की कौन मुनता है ?" यह वाक्य सुनकर बाबू साहब के कान खड़े हुए । समझे कि यहाँ गहरा मामला है। गाड़ीवाले के पास जाकर बोले- क्यों नाई, क्या बात है।