पति की गर्दन में तो एहसान का तौक पढ़ गया-~-ऐसे एहसान का
तौक, जिसकी मार से वह कभी अपनी नियतमा के सामने सिर न
उठा सकेंगे।
जिस दिन पति ने उन्हें स्वतंत्र कर दिया, और समस्त अधिकार
दे दिए, उस दिन उन्होंने केवल अपनी ही नहीं, बरन् समस्त स्त्री-
जाति की विजय समझी। उन्होंने समझा कि वह पहली भारतीय
नारी हैं, जिन्हें ऐसे अभूतपूर्व अधिकार मिले हैं। उन्होंने सोचा,
कल इस विजय पर एक लेख लिखकर किसी बढ़िया मासिक पत्र
में भेजूंगी। साथ ही अपना फोटो भी भेज दूंगी और संपादक
महोदय को एक पत्र डॉटकर लिस्गी कि लेख को अच्छे स्थान पर
हमारे चित्र सहित छापना ।
दूसरे दिन प्रातःकाल से सुखदेवप्रसाद ने अपने व्यवहार की काया-
पलट कर दी। उन्होंने प्रियंवदा देवी से किसी काम के लिये कहने
की कसम खा ली। प्रियंवदा जो बात पूछती, उसका उत्तर दे देते,
बस, इससे अधिक और कुछ नहीं ! जस घर में रहते और अपने निजी
कमरे में बैठते, तव यह दशा होती थी कि एक कुर्सी पर बैठे वह
पुस्तक पढ़ रहे हैं और दूसरी कुर्सी पर बैठी प्रियंवदा देवी पद रही
हैं। यदि सुखदेवप्रसाद को प्यास लगी, तो वह स्वयं उठकर पानी
ले लेते थे अथवा नौकर को अावाज़ दे देते थे। अभी तक तो पान
प्रियंवदा देवी लगाया करती थीं, परंतु अव सुखदेवासाद स्वयं
पान लगाने लगे। रात को भोजन इत्यादि भी अपने ही श्राप मँगा
लेते थे । सोते समय दूध भी स्वयं ही नौकर से माँग लेते । अव प्रियं-
वदा देवी को दिन-भर पलँग तोड़ने तथा उपन्यास और समाचार
पत्र पढ़ने के अतिरिक्त और कोई काम न करना पड़ता था।
इसी प्रकार चार-छः दिन व्यतीत हुए। एक दिन शाम को सुखदेवप्रसाद
बाहर घूमने जा रहे थे, उसी समय प्रियंवदा ने पूछा-कहाँ चले?
.
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/२०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११
स्वतंत्रता