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११० चित्रशाला 1 और ईश्वर से डरनेवाले मनुष्यों का प्रभाव नहीं। भाई, मेरा अपराध दमा करना । सधुवा की आँखों में भी अश्रु-पात होने लगा। उसने गद्गद से कहा--मालिक, भगवान् श्रापका भला करें। सधुवा बौटकर गाँव नहीं गया। वह शहर में अपने पुत्र ही के पास रहने लगा। दूसरे दिन चंदनसिंह के पुत्र सधुवा के पास पहुंचे, और उन्होंने उनके मामने एक हजार रुपए की थैली रख दो । सधुवा चकित होकर बोला यह क्या? चंदनम्हि के पुत्र ने कहा-पिताजी ने ये रुपए तुम्हें दिलवाए है। सधुवा बोला-बबुआ, क्या कर यह समझे कि मैंने पए के जोम से सच्ची बात कही? राम-राम ! ववुया, जो कुछ मैंने किया, वह भगवान् के डर से । मुझे लए-पैसे की जरूरत नहीं। इन्हें ने जाम्रो। चंदनसिंह के पुत्र ने बहुत कुछ कहा, पर सधुवा ने एक पैसा न लिया। उसकी उस सचाई का कारण केवल ईश्वर का दर था।