14 चित्रशाला इस घटना से प्रास-पास बड़ी सनसनी फैली। परंतु सब प्रसन्न थे। इधर कुछ दिनों से ठाकुर साहब और थानेदार में भी नाग-दाँट हो गई थी। उसने भी खोलकर ठाकुर साहब को फॉसने की चेष्टा शुरू कर दी। लक्ष्मीपुर के जमींदार गजराजसिंह और चंदनसिंह में काफ़ी शत्रुता थी। कई बार मुकद्दमेबाजी भी हो चुकी थी। इस कारण उनकी गवाही अधिक जोरदार न यो । पुलीम ने श्रास-पास फे गाँवों के किसानों को गवाहो में लेना शुरू किया, और बहुत-से सच्चे मूडे गवाह तैयार कर लिए। ठाकुर साहब से सब जलते ही थे, अतएव जिनके सामने यह घटना हुई थी, वे तो तैयार ही हो गए, परंतु जो वहाँ उपस्थित न थे, वे भी झूठी गवाही देने को तैयार हो गए । सधुवा पर भी पुलीस का जोर पड़ा ! इधर गाँववालों ने भी कहा-तुम्हारे साथ भी तो डाकुर ने कुछ नहीं उठा रक्ता था। प्रद बदला लेने का समय आ गया है। कम-से-कम कानेपानी तो 3 भिजवायो। , सधुवा ने बहुत कुछ बचना चाहा-बोला, "भूदो गवाही तो हम न देंगे", पर उसकी एक न चली। थानेदार ने शाखें नीली-पीजी करके कहा-सुनता है वे, तुझे गवाही देनी ही पड़ेगी। चों-चपड़ करेगा, तो तुझे भो चार साल को भिजवाऊँगा। सधुवा ने विवश होकर स्वीकार कर लिया। ठीक समय पर मुकद्दमा पेश हुश्रा। पुनीस ने गवाहों को सिखाया था कि कहना, ठाकुर और गुहेत; दोनों ने मिलकर मारा है। गकुर हंडे से पीट रहे थे, और गुहेत लागी से । इधर सधुवा ने कालका से कहा था-बवुया, मूठी गवाही देना बड़ा पाप है, फिर खने के मामले में ! परं पुडीस नहीं मानती।
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।