चित्रशाला . जाते हैं, तो फटी लँगोटी लगाकर । उनका कहना है कि जहाँ ठाकुर साहब ने किसान के पास साबुत कपड़े देखे दिन बस, उन्होंने समझा, इसके पास माल हो गया है, नोचो साले को। कालका -भला इनसे कोई नुस भी है ? नन-नुस कोई नहीं । इन गुनों से कौन खुस होगा। किसी को छोड़ा हो तब न ! कालका-कोई स्नुस नहीं, तब भी यह हाल है ? बुरा न मानना ननकू काका, अभी ये बातें करते हो, मगर अभी.जो ठाकुर कहें, तो तुम्ही इमारा गला काटने को तैयार हो जायो। दूसरा व्यक्ति बोला-मैग, क्या करें, कुछ खुसी से थोड़े ही ऐसा करते हैं । डर के मारे करना पड़ता है। न करें, तो वर न फेंक दिया जाय ! नन-यही बात भैया, अपनी जान और माल सबको प्यारा होता है | हमी नातिर सब करते हैं। सधुवा-कयहुँ तो दीनदयाल के भनक परैगी कान । कभी तो भगवान् गरीयों की सुनेंगे! नन--परसान कुर ने मट्टा लगवाया था । आस-पास के गाँवों के दस-बीस श्रादमी पकड़ बुलाए जाते थे। दिन-भर काम कर. वाते थे, और सॉन को पाठ पैसे देते थे। तुम्हीं बतायो, श्राउ.पैसे में कौन दिन-मर नुसी से मरने जाता था ? पर क्या करें, सब करना पढ़ता था। दूसरा व्यक्ति-हाँ मैया, ऐसी ही बात है। दिन-भर जी तोड़- कर काम करते थे, फिर भी अकुर की निगाइ टेढ़ी ही रहती थी। एक दिन मैंने कहा-'मालिक, चार दिन की छुट्टी दे दो, तो खेत सींच लें, सूखे जा रहे हैं ।बोले-'खेतों में आग लगा दो। हमारा काम हो जायगा, तब अपना काम करने पायोग ।'मैं चुप हो गया.!
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