पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७८

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चित्रशाला - एक दूसरा मुसाक्ष्य बोला--सरकार, यह मोटा हो गया है। नीच जाति के पास जहाँ चार पैसे हुए, यहाँ फिर वह भंगूठों के बन चलने लगता है। कहावत ही है "गगरी दाना, सुद टताना।" ठाकर चंदनसिंह 'हूँ' करके कुछ सोचते रहे। दूसरे दिन ठाकुर साहब ने उसी गाँव के, जिसमें कालका अहीर रहता था, एक ब्राह्मण को चुनाया, और उसको अलग ले जाकर कुछ देर तक बातें करते रहे । वात कर चुकने पर उससे बोले-अच्छा, नायो । पर देखो महाराज, जैसा कहा है, उसमें फरक न पड़े। नहीं तो चूत कटवा दूंगा । यह याद रखना! ब्राह्मण देवता हाथ जोड़कर बोले-नहीं मालिक, फरक कैसे पर सकता है। इसके दूसरे दिन प्रातःकाल एफ यावनी ठाकर साइव के पास श्राया । ठाकुर साहब शौच से निवृत्त होकर बैठे दतून कर रहे थे । वह व्यक्ति ठाकुर साहब से बोला-सुना, नरायनपुर में कल रात को बिदा महाराज के यहाँ चोरी हो गई है। आकुर साहव लापरवाही से बोले-हो ससुर गई होगी, अपने से क्या । देहात में चोरी-चकारी हुवा ही करती है वह व्यक्ति बोला-फुल इला-सा सुना है । ठीक पता नहीं, क्या बात है। ठाकुर साहब ने कुछ उत्तर न दिया । एक घंटे के बाद विदा महा- राज 'हाय स्य' करते हुए पाए। दूर ही से बोले-दोहाई है सर- कार की ! ग़रीब ब्राहाण लुट गया ! धापके राज में ऐसा कभी नहीं हुआ। यह वही ब्राह्मण देवता थे, जिनसे ठाकुर साहब ने एकांत में बातें की थीं। डाकुर साहब बोले-अरे हुश्रा क्या ?' .