पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७४

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चित्रशाला -- wtwo पांडेयजी नेत्रों में बांसू भरकर बोले-बहन, मैं अच्छी तरह यकीन करना हूँ कि तुमने जर इनको मना किया होगा । औरतों का दिल ही ऐला होता है । वे कभी लड़ाई-झगदा पसंद नहीं करतीं। वे हमेशा अमन चाहती हैं । उनका दिल इतना सन्त कमी नहीं हो सकता कि वे खून-खरामी देख सकें । ऐसे औसाफ़ (गुण ) रखने- चाली औरत पर जो जुल्म करे, वह संगसार ( पत्यरों से मार डाले जाने ) करने के काबिल है । समांदत अलीखाँ खंभे की बाड़ से निकलकर पांडेयजी के चरणों पर गिर पड़ा, और रोते हुए बोला-पंडितजी, मेरी खता मुनाफा कीजिए । मैं नहीं जानता था कि श्राप दिन इतना बसीन (विशान) । श्राप इंसान नहीं, रिश्ते हैं। पांडेयजी उसे उठाकर बोले-सनादतखाँ, तुमने अपने नाजायज़ उग्रस्तुब की वजह से इतना तूल दे दिया। तुम्हारे ही जैसे हिंदू-मुसल. मान फसाद कराते हैं, और बदनाम कुन कौम होती है । तुम्हारे पड़ोसी शेख्न साहब भी तो मुसलमान हैं, और तुमसे ज़ियादा उन्हें अपने मज़हवी असूलों की मालूमात है । मगर टनका वर्ताव देखो। हिंदू-मुसलमानों से एक तरीके पर मिलते हैं ; मजहबी इन्तला (प्रभेद) कमी जाहिर ही नहीं होता । तुमने बड़ी नादानी की थी। और "रसीदः वूद बनाए वले बखैर गुजरत ।" अब इस तस्सुव को छोड़ो, और सबसे मुहब्बत का वर्ताव करो। उसी समय शेन्ज़ साहब भी आ गए, और सघादतना से बोले- साँ साहव, श्राज देखा तुमने, इसी वजह से मैं हिंदुओं की हिमायत करता था। मैं जानता हूँ, हिंदुओं में भी शरीफ़ और फरिश्ता-वस- बत ( देव-तुल्य) इंसान मौजूद हैं, और मुसलमानों में भी शयातीन (पिशाच ) भरे है । श्राज यह न होते, तो तुम्हारी पावरू पर पानी .

- 1 फिर जाता।