पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१७२

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चित्रशाला . हो? जब तुम्हारे वाप पाए थे, तब तो सब अपनी-अपनी जोरों के लहंगों में घुसे बैठे रहे, और अब उसे निस्सहाय पाकर यह अत्याचार कर रहे हो ? अजग हटो, नहीं मारे लाठियों के सबकी खोपड़ी तोड़ दूंगा। पांडेयजी गर्जना सुनते ही लोगों ने भयमीत होकर स्त्रियों को छोड़ दिया । एक हिंदू युवक आगे बढ़कर बोला-इन मुसलमानों ने हमारे एक भाई के घर में घुसकर औरसों को वेइजत करना चाहा था, तो हम भी क्यों न वैसा ही करें ? पांडेयजी पुनः गर्भकर बोले-उस समय तुम सब कहाँ मर गए थे? उनको परास्त करके ऐसा करते, तो कुछ वीरता भी थी। और, यदि मुसलमान जहन्नुम में जाय, तो तुम भी क्या उनके साथ जाश्रोगे? एक सच्चे हिंदू का यह कर्तव्य नहीं कि निस्सहाय मर्द पर भी ऐसा अत्याचार करे, न कि अबजाओं पर। स्त्रियाँ, बच्चे और देवस्थान, ये सबके बराबर हैं। इन पर जो अत्याचार करता है, वह कायर है, नारकी है, चाहे वह किसी भी जाति का हो । स्त्री किसी भी लाति की हो, वह सदैव अपना है। प्रत्येक पुरुप को उसकी रक्षा करनी चाहिए । बच्चा किसी भी क्रीम का हो, सदैव दया के योग्य है । इन पर अत्याचार करनेवाला मनुष्य नहीं, देय है, पिशाच है, पशु है। महते-कहते पांडेयजी के मुँह में फेना अा गया। एक हिंदू ने पुनः. साहस करके कहा-श्राप इस झगड़े में न पदिए, अपने घर जाइए. हम लोग जैसा उचित समझंगे, वैसा करेंगे। पांडेयजी की आँखों से खून वरसने लगा। टन्होंने दाँत पीसकर कहा-जब तक मेरी लाश न गिरेगी, तब तक तुम इन स्त्रियों के हाथ नहीं लगाने पापोगे। एक तुमने यह किया कि पर्दानशीन स्त्रियों के श्राकर हाथ लगाया । श्रव दूसरा पाप नहीं करने पायोगे । नामदों, तुम्हें टचितानुचित का ज्ञान है कहाँ ? उचिवा- पाप तो