कर्तव्य-पालन १६३ . पांडेयजी श्राप लोग बात करना उचित समझते होते, तो यह नौबत. ही क्यों आती? दूसरा-खैर, इससे कोई बहस नहीं। अब यह बताइए कि हम लोगों को क्या करना चाहिए ? पांडेयजी-मैं तो यह जानता हूँ कि आप लोग अपने-अपने घर में बैठे और अपनी रक्षा का यथेष्ट प्रबंध रक्खें । स्वयं किसी पर श्राक्रमण करने का स्वप्न में भी विचार न करें । हाँ, यदि आप पर भाक्रमण हो, तो उससे बचें, और समय पड़ने पर धैर्य तथा साहस के साथ एक दूसरे की सहायता करें। हिंदुओं में यह बड़ा भारी दोप है कि वे केवल अपना स्वार्धं देखते हैं। यदि एक हिंदू पिट रहा है, तो दूसरा खड़ा-खड़ा देखेगा, उसकी सहायता कभी न करेगा । यह बुरी बात है। यही दशा देखकर दूसरों को हिंदुओं पर आक्रमण करने का साहस होता है। इसी प्रकार समझा-बुझाकर पांडेयजी ने उन्हें बिदा किया। दो- तीन दिन इसी प्रकार व्यतीत हो गए । एक दिन संध्या को समादत. अनीखाँ के मकान से मिले हुए एक हिंदू के मकान में सत्यनारायण की कथा थी । अतएव शंख और घदियाल बजाना स्वाभाविक था । इस पर संभादतअलीखाँ ने आपत्ति की। परंतु उनकी बात पर किसी ने कान न दिया । यह देखकर उस समय तो वह चुप हो गए, पर दूसरे दिन शाम को दस-बारह लठ-वंद मुसलमान उस हिंदू के द्वार पर पाकर जमा हो गए, और लगे गालियाँ बकने । वह बेचारा घर का द्वार बंद करके बैठ रहा। यह देखकर मुसलमान किवाड़े तोड़कर भीतर घुसने की चेष्टा करने लगे । इसकी सूचना पं० गंगाधर को मिली । यह सुनते ही वह घबरा उठे। उन्होंने तुरंत एक लाठी अपने हाथ में ली और एक अपने नौकर को, जो ठाकुर था, देकर उसे साथ लिया और निकल खड़े हुए । बाहर निकलकर उन्होंने पहले तो देखा
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