१६२ चित्रशाला उनमें से एक योजा-धाप ही के पास थाए है पांढेगजी-फहिए, क्या याज्ञा है? पहला-बारा यह है कि याजकल शहर की हालत जैसी है, वह याप जानते ही है। पांडेयजी-हाँ-हाँ। दूसरा-यह भी आपको ज्ञात है कि इस मुहल्ले में धार-पाँच घर मुसलमानों के भी हैं। पांडेयजी-हाँहों। पहला-तो ऐसी दशा में हम लोगों की रक्षा का क्या उपाय है? पांडेयजी मुसकिराए। उनके मुख पर कुछ घृणा का भाव उत्पन्न हुश्रा । कुछ देर तक चुप रहकर उन्होंने कहा-इस मुहल्ले में अधिक- तर तो हिंदू ही हैं । यह आप मानते हैं न ? पहला-हाँ, मानेगे क्यों नहीं। पांडेयजी-तो ऐसी दशा में रक्षा का अधिक विचार मुसलमानों के में उत्पन्न होना चाहिए, क्योंकि ये लोग कम है। थाप लोग क्यों चिंता करते हैं ? श्रापका नो मुहन्ना ही है। दूसरा-श्रजी पांडेयजी, इन लोगों को श्राप जानते हैं, जहाँ एक ने अल्लाहोअकबर की अावाज़ लगाई, वहाँ चीटियों की तरह ताँता चध जायगा। हम लोगों में से तो कोई घर के बाहर भी न निकलेगा। पांडेयजी-तो इसमें किसका अपराध है ? जब श्राप संख्या में अधिक होते हुए भी अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं, तो मुसलमानों को दोष देना व्यर्थ है। तीसरा-हमारा अभिप्राय यह है कि प्रापका मुसलमनों से मेल- जोज अधिक है, इस कारण ग्याप उनके इरादों को जानते होंगे । हम लोग तो इन यवनों से बात करना भी उचित नहीं समझते । ,
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