चित्रशाला रमत-मलेन्यले नहीं हैं, सब स्याह-एव (कलुपित हृदय) है। इन काफिरों का कोई एतवार नहीं। सश्रादन-शमतली से उनकी राहोरस्म म्य। रहमत-मैंने कहा न, वह तो अाधा हिंदू है । अव्याजान, में जामा मसजिद गया था। वहीं एक मौलवी साहय ने हिंदुधों के यारे में ऐसी-ऐसी यातं यतनाई कि चूय जोश खाने लगा । वहाह, यही जी चाहता था कि इन बेदीनों से कोई तअपलुक न रखें । मुसलमानों को ये बड़ी हिकारत की नजर से देखते हैं। सश्रादत-यह बात तो जाहिर है कि ये लोग हमारा छुपा हुश्रा नहीं खाते। हालाँकि सच पूछो, तो मुसलमानों को ही इनका छुपा न साना चाहिए । रहमत-मैं वो जब इन लोगों के इस बर्ताव पर गौर करता हूँ, तो वेभरितयार तैश (क्रोध) धाता है। मो-तू कहीं किसी से बह न बैठना । तुझे बड़ी जल्दी गुस्सा पाता है। रहमत-अम्माँ, बड़ाई तो एक बार होगी, और जुलर होगी, यह -रुक नहीं सकती। मा-~-ठई अल्जाइ, बेटा, मेरे सामने बड़ाई-झगड़े का ज़िक्र मत फरो, मेरा दम खुश्क होता है। उसी समय रहमतअनी की पोडशवर्षीया मगिनी उस स्थान पर आई । उसने पूछा-अम्मीजान, कहाँ बड़ाई होगी ? माँ लड़ाई-बदाई कहीं कुछ नहीं है, ऐसे ही बातचीत हो रही है। कन्या-कल भाई साहब एक अलवार लाए थे, मैंने उसमें पढ़ा था कि एक जगह-देखो, नाम याद नहीं पाता-बढ़ी बढ़ाई हुई, हिंदू-मुसलमान आपस में कट मरे । माँ-हुई होगी, तुम इन झगड़ों से क्या मतलब ? भाज अभी . ..
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