पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६२

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कर्तव्य-पालन . . -श्रापका फर्माना शेख साहब-जरूर होंगे। मैंने अर्ज किया न कि ऐसे मुफसिद श्रापको हर क़ौम में मिलेंगे। सो जनाव, फरते थोड़े आदमी हैं, बदनाम कुल क़ौम होती है। और, खता मुनाफ़ कीजिएगा, लीडरों में भी ऐसे बहुत-से हैं, जो स्वाहमरवाह लोगों को जोश दिलाते हैं । कहने को तो हिंदू-मुसलिम-इत्तहाद ( एकता ) की कोशिश करते हैं, मगर लेक्चरों में ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं, जिससे बिला वजह दोनों कौमें एक दूसरे के खिलाफ मदकती हैं। पांडेयजी- रुदुस्त है। मैंने भी कई बार इस बात को महसूस किया है। शेख साहब-हमारे यहाँ मुल्ला और पापके यहाँ पंडित लोग, इन्हीं की वजह से ज़ियादा फसाद होता है। मुल्ला लोगों की यह हालत है कि खुदा वचावे । ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं कि जुहना (मूर्ख ) लोगों में जोश पैदा होता है । जो आनिल (समझदार) हैं, वे कुछ बोल नहीं सकते। कुछ कहें, झट से मुल्ला साहब फतवा दे देते हैं कि यह काफ़िर है, मुरतिद है 1 लाचार खून पीकर रह जाना पड़ता है । जब झगड़ा होता है, तो मुल्लाजी हुजरा(कोठरी) बंद करके बैठ रहते हैं। पांडेयजी-बिलकुल सच है। ऐसी ही हालत शेख साहब-जनाव, मैं तो इन बातों को पसंद नहीं करता। और, मुझी पर क्या फ़र्ज़ है, कोई भी शरीफ़ समझदार श्रादमी इन्हें पसंद न करेगा। हाँ, तो श्राप बाग़ चलेंगे? अगर न चलें, तो मुझे इजाजत दीजिए। पांडेयजी-चलता हूँ। यह कहकर पांडेयजी ने शीघ्रतापूर्वक वस्त्र पहने, ' और शेन साहब के साथ हो लिए। she