कर्तव्य-पालन १४६ हुश्रा जाता है - - गंगापुत्र-इसमें दिन होने की कौन बात है मालिक, अभी सब . 1.चुटकी बजाते बनती है। आपका हुक्म-भर होना चाहिए। वह व्यक्ति-तुम्हें कोई अड़चन न हो, तो बना लो गंगापुत्र-वाह सरकार, प्रापके काम के लिये कभी अड़चन हो सकती है ? यह तो जरा-सी बात है, काम पड़े, तो तुम्हारे लिये प्राण तक हाज़िर हैं। इतना कहकर गंगापुत्र ने पुकारा-मुनुया, मुनुयारे ! एक थोर से आवाज़ आई-श्राए! कुछ सेकिंडों में एक दस वर्ष का बालक दौड़ता हुश्रा पाया. और गंगापुत्र से बोला-काहे वप्पा, का है ?. गंगापुन- है का, यहाँ काम कर बैठके, इधर-उधर मारा-माराघूमताहै। वह व्यक्ति इसे कुछ पढ़ाते-लिखाते नहीं ? गंगापुत्र-थरे सरकार, यह साला न पढ़े न लिखे, दिन:भर खेला करता है। जो कहो कि मच्छो भाई, न पढ़-लिख, न सही; घाट ही पर बैठ, सो भी नहीं करता। ससुर ने नाकों दम कर रक्खा है । वह व्यक्ति-अभी बच्चा है, धीरे-धीरे घाट पर बैठने लगेगा। योड़ा पढ़ लेता, तो अच्छा था । गंगापुत्र-जो साले के करम में यदा होगा, सो होगा। हमारी तो आप लोगों के चरणों में पार हो पाई है, अब श्रागे यह जाने, इसका काम जाने। गंगापुत्र ने एक खारुए की बड़ी थैली उठाई । उससे भाँग-इला- यची, मिर्च-बादाम इत्यादि मसाला निकालकर लड़के को दिया, और कहा-जाओ, भाँग धो लाभो। बादाम पहले भिगो देना, जब तक भांग. धुलेगी, तब तक फूल जायेंगे। जा, झटपट श्राना नहीं तो इंडे पड़ेंगे। . 1
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