कर्तव्य-पालन . (1) सबेरे सात बजे का समय था । गंगा-तट पर स्नानार्थियों की भीड़ थी। उसी समय एक व्यक्ति गंगाजली हाथ में लिए और पाल में पूजन का सामान दवाए बाट पर श्राया। इस व्यक्ति की श्रायु ३० वर्ष के लगभग होगी। शरीर सुढील तथा सुदृढ़ या । वर्ण स्वच्छ गौर था । इस व्यक्ति को देखते ही तम्त पर बैठे हुए एक गंगापुत्र ने कहा-सदा जय रहे, भागीरथी सदा पोजा प्रसन्न रखें; प्रायो भैया, श्राज तो बड़ी देर कर दी। वह व्यक्ति बोला-हाँ, कल रात को ज़रा थिएटर देखने चला गया था, इसी से देर हो गई । तुम जानो, जो श्रादमी दो-ढाई बजे सोवेगा, वह पाँच वजे कैसे उठ सकता है ? गंगापुत्र दाँत निकालकर बोला-हाँ सरकार, यह बात तो वाजिवी है। उस व्यक्ति ने गंगाजली तथा पूजा की पोटली तरन्त पर रख दी, और स्वयं भी उसी पर बैरते हुए बोला-जरा सुस्ता लूँ, तो स्नान करूँ। रात का जागना भी बड़ा बुरा होता है । अब इस समय यही जी चाहता है कि पड़के सो जाऊँ। गंगापुत्र-विना पाँच-छः घंटे सोए नींद पूरी नहीं होती। वह व्यक्ति-हाँ, इस समय जी न-जाने कैसा हो रहा है। गंगापुत्र-हुकुम हो, तो ठंडाई बनाऊँ। ठंढाई से गरमी शांत हो जायगी। -भव रहने दो, काहे को दिन होगे। वह व्यक्ति-
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१५५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।