पथ-निर्देश १४३ बैरिस्टर.-बस, उस - स्थान पर एक गवाही बनवा ली जायगी। वह सज्जन-बात तो बड़ी श्राला दर्जे को है; परंतु झूठी गवाही बनाने के लिये तैयार कौन होगा? ऐसे-वैसे की गवाही मानी नहीं जायगी, और प्रतिष्ठित श्रादमी झूठी गवाही क्यों देने लगा.? वैरिस्टर०-श्राप देखते तो जाइए । इसी बात के तो अस्सी हजार लँगा, खाली नालिश करने के थोड़े ही। वह सजन-नेर, श्राप जानें, श्रापका काम जाने ? हमें तो रुपए मिलने चाहिए। बैरिस्टर०-खैर, श्राप अब जाइए, और कल . या परसों पाँच हजार मेरी फीस के, और इसकी कोर्ट-फ्रीस ले पाइए । नालिश दायर कर दी जायगी। वह सज्जन-कोर्ट-मीस कितनी लगेगी? बैरिस्ट साहब ने हिसाव लगाकरः बतला दिया। वह सजन दो रोज वाद पाने का वायदा करके चले गए। दो रोज बाद वह रुपए लेकर आए, और बोले-लीजिए, ये पाँच हज़ार तो आपके हैं, और ये कोर्ट-फ्रीस के। गिन लीजिए, सौ-सौ के नोट हैं। वैरिस्टर साहब ने रुपए गिनकर रख लिए। उन सज्जन ने पूछा-हाँ, तीसरे गवाह की वावत आपने क्या 'किया? बैरिस्टर साहब उन्हें एक निर्जन कमरे में ले गए, और दस्तावेज दिखलाकर बोले- देखिए, मैंने क्या कमाल किया है! उन सज्जन ने देखा, दस्तावेज़ पर तीसरे गवाह के स्थान पर स्वयं बैरिस्टर साहब ही के हस्ताक्षर । स्याही भी वैसी ही थी, जैसी कि. दस्तावेज़ की।.. उन सज्जन ने विस्मित होकर पूछा-आपने स्वयं अपने ही को गवाह बना दिया ? .
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