पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१४८

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पथ-निर्देश . वह सज्जन-क्या कहें, कुछ ऐसे झमेले आ गए कि रजिस्ट्री नहीं हो सकी, वक्त निकल गया । दूसरे, कुछ विश्वास भी था, इसलिये अधिक ध्यान नहीं दिया । वैरिस्टर-विश्वास था, तो फिर नालिश की नौबत कैसे प्राई ? वह सजन-समय की यात तो है । श्राजकल जिस पर विश्वास करो, वही विश्वासघात करता है। वैरिस्टर०-इस दस्तावेज़ पर जिन गवाहों के दस्तखत हैं, दे तो सब आपकी जानिब से गवाही देंगे न ? वह सज्जन-यही तो खरावी है। जिन दो गवाहों के दस्तखत हैं, वे दोनों ही इन तीन सालों के अंदर मर चुके हैं। वैरिस्टर०-यह तो बढ़ी बुरी बात हुई । एक तो रजिस्ट्री नहीं हुई, दूसरे गवाह नदारद ! बड़ो कठिन समस्या है। वह सजन-जब आप-ऐसे बैरिटर भी इसे कठिन समस्या कहेंगे, तो फिर इसे सुलमावेगा कौन?" वैरिस्टर-कम-से-कम एक ऐसे गवाह की ज़रूरत है, जो प्रति- ष्ठित हो, जीवित भी हो। वह सज्जन-~-परंतु दस्नत तो दो ही के हैं, और उनमें से दोनों. नहीं है। क्या जवानी गवाही काम दे सकती है ? बैरिस्टर०-जबानी गवाही तो काम नहीं दे सकती। वह सजन-यदि श्राप इस दस्तावेज़ का रुपया वसूल कर दें, तो पचास हजार रुपए आपकी भेंट करूँगा। पचास हजार रुपए सुनते ही बैरिस्टर साहब के मुँह में पानी भर पाया। सोचा, कुछ और लेना चाहिए। ऐसा अवसर फिर कब मिलेगा । कम-से-कम एक कोठी खरीदने-भर को तो ले लो। फिर देखा जायगा । यह सोचकर बोले-काम टेढ़ा है। इसका मिहनताना मैं ८० हजार से कम न लूँगा।