पथ-निर्देश १३३ बैरि०नई-पुरानी पर बात नहीं है । वह गाड़ी श्रोवरलैंड है। श्रोवरलैंड गाही भी कोई गाड़ी में गाड़ी है। आजकल साधारण आदमियों के पास भी श्रीवर लैंड रहती है । गाड़ियाँ हैं हडसन, डॉज । हडसन-गादी सात-पाठ हजार से कम में नहीं पाती । इस समय यहाँ कोई ऐसा वैरिस्टर नहीं, जो श्रोवर-लैंड पर चलता हो । जव उस पर निकलता हूँ, सो शर्म मालूम होती है । पली-इस डांज-काज के फेर में तो पदो नहीं। सबसे पहले एक कोठी खरीदनी चाहिए, किराए के बंगले में रहते अच्छा नहीं लगता । वह भी कोई आदमी है, जिसका घर का घर न हो। अपनी निज की झोंपड़ी अच्छी; पर किराए का महल भी अच्छा नहीं। वैरिक-अच्छी कोठी ७०.८० हजार से कम की नहीं मिलेगी, और पल्ले इस वक्त २० ही हज़ार हैं। बतलाओ, इतने में क्या-क्या करें। वही कहावत है-"एक टका मेरी पाली; नथ गदाऊँ कि वाली।" कुल बीस हजार रुपल्ली, उसमें मोटर भी हो, कोठी भी हो, बाग़ भी हो। पत्नी-इस हिसाब से तो अभी १०.६० हजार की कमी है। वैरि०-अरे सब कमी-ही-कमी तो है। अभी है ही क्या ? अगर पाँच छः हजार माहवार मिलने लगे, तब तो मजा आ जाय। कम-से-कम चार हजार माहवार बचें, एक ही साल में ५० हजार बच जायें । बड़े-बड़े मुकदमे तो-जिनमें तीन-तीन, चार-चार सौ की पेशी मिहनताना होता है जो हमसे पुराने हैं, वे मार ले जाते हैं। हमें तो बस, यही पचास से लेकर सौ-डेढ़ सौ, हद दो सौ, सक के मुकदमे मिलते हैं। पत्नी-वे तुमसे अच्छा काम करते होंगे, तभी तो उनको इतना मिलता है ? - .
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