१३२ चित्रशाला य की दृष्टि में, दो सहस्त्र रुपए मासिक कम थे ! नगर में अन्य चैरिस्टर भी थे। उनमें कुछ ऐसे थे, जिनकी श्राव पाँच-छः सहस्त्र पए मासिक तक थी। इसका कारण यह था कि वे पुराने थे, उनकी धाक जमी हुई थी । बैरिस्टर विश्वेश्वरनाथ भी रात-दिन इसी चिता में रहते थे कि किसी प्रकार उनकी भी श्रामदनी पाँच-छः सहस्त्र या इससे भी अधिक हो जाय । रात का समय था। पति-पत्नी एक बिजली की रोशनी से जग- मगाते कमरे में सुंदर तया कोमल शरया पर लेटे हुए बातें कर रहे थे। बैरिस्टर साहब बोल उठे-क्या कहें, परसों एक ऐसा अच्छा बारा विक गया, साठ हजार में विका! • पनी ने पूछा-किसका था ? वैरि०-एक सेठ का था । बढ़ा सुंदर बारा है, बीच में एक छोटी-सी कोठी भी है। पत्नी-किसने लिया? वैरि०-टॉमसन साहब वैरिस्टर ने। सच पूछो, तो साठ हजार में भी सस्ता मिला । एक लाख से कम का नहीं है । (ठंडी साँस लेकर ) रुपया नहीं था, नहीं तोxxx पनी-रुपया हो कैसे ? जो कुछ आता है, सब खर्च हो जाता है। किसी महीने में दो सौ बच गए, किसी में चार सौ। किसी महीने में तो एक पैसा भी नहीं बचता ! वैरिक-यही तो मुशकिल है। इतना हाय रोककर खर्च करते हैं, फिर भी कुछ नहीं बचता । खर्च।सब बँधे टॅके हैं, कोई फिजूल खर्च नहीं होता। एक बढ़िया कार (मोटर) लेने का इरादा न जाने कितने दिनों से है; पर इसी मारे नहीं लेते कि मुफ्त में छ:- सात हजार निकल जायेंगे। पनी-यह गाड़ी क्या कुछ खराब है ? अभी बिलकुल नई तो है 1 ।
पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१४०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।