पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१३८

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चित्रशाला 1 . मापका यान ग़लत है। वहीं बड़े श्रादमी शराब ज्यादा नहीं पीते। फिर भी बढ़े पाइनियों को एक दिन मैंने ४०.१०) की शराब पी जाते देखा है, और यह रोज का अर्थ है घनश्याम -अब ज्यादा नहीं पीते, तो इतना खर्च क्यों पड़ता है ? विश्वेश्वर ज्यादा नहीं पीते, पर कीमती शराब पीते हैं-शपि. यन', 'कागनेक', 'क्लेरेट', 'शेरी' इत्यादि ही पीते हैं । ये सब बड़ी कौमवी होती है, दस-बारह रुपए वोठल से कम की कोई नहीं होती। एक बार में पीते बहुत योदी ई, दो पैग में ज्यादा नहीं; पर दिन-भर में कई बार पीते हैं। जब प्यास लगती है, शराब ही पीते हैं । सादा पानी पीना तो वहीं कोई जानता ही नहीं। ग़रीब लोग भी प्यास जगने पर शराब ही पीने की चेष्टा करते हैं, चाहे 'बियर' और 'जिन' ही पिएँ। वनश्याम-हाँ, तो श्राप किंचने की शराब पी जाते हैं? विश्वेश्वर-मैं तो शाम को, खाना खाने के वक्त, थोड़ी-सी पी लेता हूँ, बस। घनश्याम-तो इममें तो ज्यादा खर्च न पड़ता होगा? विश्वेश्वर-अगर मैं अकेला पिके, तो एक बोतल्न चार दिन के लिये कानी हो जाय, एक बोतल हः-सात नए की हुई । इस तरह ३० रुपए में महीना पार हो जाय । मगर चार-दोस्तों को मी कमी- कमी पिलानी पड़ती है, इसलिये महीने में पाठ-दस बोतलें सर्च हो जाती हैं । १०.६० रूपए इसमें भी खर्च हो जाते है। वनश्याम-पाँच सौ रुपए मासिक केन्द्रगमग तो यही हो गया। विश्वेश्वर-बी, और खाना, कपड़ा-जना तया और फुटकल वर्च। आम तौर से सब मिनाकर एक हजार माहवार से कुछ ज्यादा ही बैठ । अगर किसी नहीने मेहमान पा गए या कहीं रिस्तेदारी में व्याह शादी हुई, तो देव-दो हजार तक को नौवत पहुँच जाती है। . 1 चाता है