पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१२९

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सच्चा कवि .. प्रधम चार मुझसे याचना की है ; मैं उसे अवश्य पूर्ण करूँगा। महाराज ने उसी समय मोहनलाल को मुक्त करने की प्राज्ञा निकाली। मोहनलाल कारागार से मुक्त करके महाराज के सामने लाया गया। प्रवीणजी ने दौड़कर उसे गले से लगा लिया, और महाराज से योले-श्रीमन् , अाज से यह मेरा पुत्र है। मेरे आद श्रापकी सभा में मेरे श्रासन पर यही बैठेगा। महाराज ने विस्मित होकर कहा-~-पर आपका पुत्र अंबिका. प्रसाद? प्रवीणजी -वह मेरे श्रासन के सर्वथा अयोग्य है। वह मेरे शरीर का पुत्र है, और मोहनलाल मेरी आत्मा का। इस लिये मेरे प्रासन का उत्तराधिकारी यही है। महाराज ने प्रवीणजी पर एक प्रशंसात्मक दृष्टि डालकर कहा- प्रवीणजी, भाप सच्चे कवि हैं।