सचा कवि . । कल में - सभासद-मोहनलाल से संबंध कुछ भी नहीं है ; परंतु उसके राजकवि रहने तक के काल से संबंध अवश्य है उसी समय महारान बोल उठे-हाँ, यह तो आपने बड़ी बारीक बात कही । मैं भी कुछ ऐसा ही समझता हूँ। प्रवीणजी, यह बात बिलकुल ठीक है कि श्रापकी कविता में अब वह मधुरता, वह गहनता, वह चमत्कार नहीं रहता, जो उस समय रहता था, जब मोहनलाल राजकवि था। इसका क्या कारण है ? प्रवीणजी इत-चुद्धि होकर बोले-श्रीमन्, मैं पया कारण वताऊँ? मैं स्वयं नहीं जानता कि क्या कारण है। अच्छा, श्रीमान् को एक कविता सुनाऊँगा । प्राशा है, उसे सुनकर श्रीमान् का यह विचार जाता रहेगा। महाराज ने कहा-अच्छी बात है, सुनाइएगा। प्रवीणजी उस दिन रात को एक बजे तक बैठे कविता लिखते रहे। परंतु लिख चुकने पर जब उन्होंने उसे पालोचनात्मक दृष्टि से पढ़ा, तो वह स्वयं उन्हें पसंद न श्राई । उन्होंने फिर उसे परिष्कृत किया। दूसरे दिन जब महाराज को कविता सुनाई, तो उन्होंने कहा- कविता अच्छी है ; पर वह बात नहीं पाई । प्रवीणजो भी हृदय में समझते थे कि महाराज की यह वात ठीक है। प्रवीणजी ने महाराज से कुछ न कहा । उदास होकर घर आए । रात को उन्होंने सोचना शुरू किया-क्या कारण है कि अब वैसी सुंदर कविता नहीं बनती, जैसी कि मोहनलाल के समय में बनती थी ? अब हृदय में वह तरंग ही नहीं उठती, वह जोश ही नहीं उत्पन्न होता; वे भावः ही नहीं उदय होते । परवा रहती है कि कविता साग सुंदर हो, उसमें कहीं ढूँढने पर भी कमज़ोरी न मिले। . - इस बात की ,
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