पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३८
चिन्तामणि

३ चिन्तामणि आनन्द प्राप्त करते देखे जाते हैं। इसी प्रकार प्राकृतिक दृश्य-वर्णन- मात्र को, चाहे कवि उसमे अपने हर्प आदि का कुछ भी वर्णन न करे, हम काव्य कह सकते है । हिमालय-वर्णन को यदि हम कुमारसम्भव से निकालकर अलग कर लें तो वह एक उत्तम काव्य कहला सकता है। मेवदूत में विशेषकर पृर्वमेघ मे----अकृतिक दृश्यों का वर्णन ही प्रधान है। यक्ष की कथा निकाल देने पर भी उसका काव्यत्व नष्ट नहीं हो सकती ।। ऊपर ‘नख-सिख' की बात आ गई हैं, इसलिए मनुष्य के रूप- वर्णन के सम्बन्ध में भी दो-चार बातें कह देना अग्रासङ्गिक न होगा । कारण, दृश्य-चित्रण के अन्तर्गत वह भी आती हैं। 'नख-सिख' में केवल नायिका के रूप का वर्णन होता है । पर उसमे भी रूप-चित्रण का कोई प्रयास हम नहीं पाते, केवल विलक्षण उत्प्रेक्षाओं और उप- मानों की भरमार पाते हैं । इन उपमानो के योग द्वारा अङ्गो की । सौन्दर्य-भावना से उत्पन्न सुखानुभूति में अवश्य वृद्धि होती है, पर रूप नहीं निर्दिष्ट होता । काव्य में मुख, नेत्र और अधर आदि के साथ चन्द्र, कसल और विद्रुम आदि के लाने का मुख्य उद्देश्य वर्ण, आकृति आदि को ज्ञान कराना नहीं, बल्कि कल्पना मे साथ-साथ इन्हें भी रख- कर सौन्दर्य-गत आनन्द के अनुभव को तीव्र करना है । काव्य की उपमा का उद्देश्य भावानुभूति को तीव्र करना है, नैयायिको के 'गो- सदृश गवयः' के समान ज्ञान उत्पन्न कराना नहीं । इस दृष्टि से विचार करने पर कई एक प्रचलित उपमान वहुत खटकते है-जैसे, नायिका की कटि की सूक्ष्मता दिखाने के लिए सिहिनी को सामने लाना, । जॉधो की उपमा के लिए हाथी की सूंड़ की ओर इशारा करना । खैर, इसकी विवेचन उपमा आदि अलङ्कारों पर विचार करते समय कभी किया जायगा । अव प्रस्तुत विषय की ओर आती हूँ। मनुष्य की आकृति और मुद्रा के चित्रण के लिए भी काव्य-क्षेत्र