पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२२६

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काव्य में अभिव्यञ्जनावाद २१६ वेदान्त, हठयोग आदि की साधारण बातो को लेकर पहेली के ढंग के रूपक बाँधने की प्रवृत्ति पाई जाती है, वह भी इसी रूढ़ि को निर्वाह है। रहस्यवादी अंगरेज कवि व्लेक ( BJake ) ने कल्पना को जो ईश्वर का दिव्य साक्षात्कार वताया, उसका भी यही साम्प्रदायिक मूल है। इधर क्रोचे ने जो ‘बाद खड़ा किया है, वह भी इसी का अधुनिक वाग्विस्तार है। ईसाई भक्तिमार्ग के इस छाया-दृश्य' ( Plnantas111ata } वाले प्रवाद का प्रभाव योरप के काव्यक्षेत्र में भी समय-समय पर प्रकट होता रहा । सन् १८८५ में फ्रांस के रहस्यात्मक प्रतीकवादियों (Symboeists Decadeints ) ने कविता का जो ढंग पकड़ा था उसमें उक्त छाया-दृश्य' वाली धारणा का पूरा अनुसरण था । इसी से जब उक्त रहस्यवाद का ढंग ब्रह्मोसमाज के भजनो में दिखाई दिया तब पुराने ईसाई भक्तों के उसी ‘छाया-दृश्य' ( Plhantasinata) के अनुकरण के कारण उस ढंग की रचनाओं को ‘छायावाद' कहने लगे । यह है हिन्दी के वर्तमान काव्यक्षेत्र में प्रचलित 'छायावाद शब्द का मूल और इतिहास ।। प्राचीन आर्य जातियों मे रहस्यवाद की प्रवृत्ति नहीं थी---न योरप में, न भारतवर्ष में । प्राचीन यूनानी और रोमन दोनो इससे बचे हुए थे । ॐ तत्वज्ञान-संपन्न यूनानी जाति स्वच्छ विचार और

  • Taken all in all, it is evident that mysticism played on inconspicuous role in the religious life of the Hellenes The Greek genius loved clearness and self-possession too well to seck the divine in mystical darkness and self-surrender

Perlaps no semi-civilized people was ever more free from mysticism, in our sense of the term, than the old Romans --The Psychology of Religious Mysticism (by James H Leuba )