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चिन्तामणि

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१६६ चिन्तामणि असली अङ्ग हो सकता है। बेल-बूटे या नक्काशी की सौन्दर्य-भावना भावानुभूति के रूप में नहीं होती । अतः कलावादियो को भावानुभूति से सौन्दर्य-भावना को अलग करना पड़ा । तव से तरह तरह के सौन्दर्य-शास्त्र बनने लगे जिनमे एक दूसरे से भिन्न ‘सौन्दर्य के पचीसो लक्षण और उसके सम्बन्ध में पचीसो मत प्रकाशित होते आ रहे हैं, जो कलाओ पर तो कुछ दूर तक घटते हैं पर काव्य को दूर ही दूर से छते है । इन मतों का योरप के अनेक कवियों की रचनाओं पर थोड़ाबहुत प्रभाव पड़ता ही है, पर सचे कवियों पर नहीं । अधिकांश की रचनाएँ हृदय की सार्मिकता से ही सम्बन्ध रखती है। कुछ को यह ‘कलावाद' और 'सौन्दर्यवाद' को हल्ला खटकता भी है। हाल मे इंगलैंड में रूपर्ट नुक ( Rupert Brooke ) नामक एक कवि हुआ है जो कवित्व की सच्ची मार्मिक भावना लेकर इस जगत् मे आया था, पर थोड़ी अवस्था में ही सन् १९१४ के योरपीय महायुद्ध में मरा । उसने सौन्दर्यवादियों के नानो मतो को अपनी अपनी भली-बुरी रुचि का आलाप मात्र कहा, विशेषतः क्रोचे के वितण्डावाद को । वहाँ के और सच्चे कवियों के समान उसे भी उसी प्रकार भावे या हृदय की मार्मिक अनुभूति में ही कविता की आत्मा के दर्शन होते थे जिस प्रकार भारतीय सहृदयो और कवियो को । काव्य में सौन्दर्य-भावना को एक अलग अनुभूति माननेवालो के इस तर्क को कि “जब कोई कहता है कि यह वस्तु ‘सुन्दर' है तब उसको यह मतलब नहीं होता कि वह प्रिय ( अर्थात् प्यार करने की वस्तु ) है; अतः सिद्ध है कि सौन्दर्य की भावना का प्रिय की भावना से अलग अस्तित्व है उसने लचर कहा था ।* + It is possibly true, that when men say "This is bautiful, they do not mean "This is lovely'. They may mean that aes