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चिन्तामणि

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१७८ चिन्तामणि अपेक्षित होगी । जहाँ वाक्य या कथन में यह योग्यता, उपपन्नता या प्रकरण-संवद्धता नहीं दिखाई पड़ती वहाँ लक्षणों और व्यञ्जना नामक शक्तियों का आह्वान किया जाता है और 'योग्य' अथवा प्रकरण-संबद्ध अर्थ प्राप्त किया जाता है। यदि इस अनुष्ठान से भी योग्य या संवद्ध अर्थ की प्राप्ति नहीं होती तो वह काव्य या कथन प्रलाप-मात्र मान लिया जाता है। यदि किसी लड़की को दिखाकर कोई किसी से कहे कि तुमने इस लड़की को काटकर कुएँ में ढाल दिया तो सुननेवालो के मन में इस वाक्य का अर्थ सीधे न पॅसेगा, वह एकदम असंभव या अनुपयुक्त जान पड़ेगा। फिर चट लक्षणा के सहारे वे इस अबाधित या समझ में आनेवाले अर्थ तक पहुँच जायेंगे कि “तुमने इस लड़की को बुरे घर में व्याह कर अत्यन्त कष्ट में डाल दिया। इसी प्रकार गरमी से व्याकुल लोगो में से कोई बोल उठे कि “एक पत्ती भी नहीं हिल रही है तो शेप लोगो को शायद पहले यह कथन नितान्त अप्रासंगिक जान पड़े, पर पीछे वे व्यञ्जना के सहारे कहनेवाले के इस सुसङ्गत अर्थ तक पहुँच जायेंगे कि “हवा विल्कुल नहीं चल रही हैं। इससे यह स्पष्ट है कि लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ भी योग्यता' या उपयुक्तता' को पहुँचा हुआ, समझ में आने योग्य रूप में आया हुआ, अर्थ ही होता है । अयोग्य और अनुपपन्न वाच्यार्थ ही लक्षणा या व्यञ्जना द्वारा योग्य और बुद्धिग्राह्य रूप में परिणत होकर हमारे सामने आता है। व्यञ्जना के सम्बन्ध में कुछ विचार करने की आवश्यकता है। व्यञ्जना दो प्रकार की मानी गई है--वस्तु-व्यञ्जना और भावव्यञ्जना 1 किसी तथ्य या वृत्त की व्यञ्जना वस्तु-व्यञ्जना कहलाती है। और किसी भाव की व्यञ्जना भाव-व्यञ्जना ( भाव की व्यञ्जना ही जव रस के सव अवयवो के सहित होती है तब रस-व्यञ्जना कहलाती है)। यदि थोड़ा ध्यान देकर विचार किया जाये तो दोनों