पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१५८

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६ ।। काव्य मैं रहस्यवाद छायावाद की जानकारी कराने के लिए जो लेखकलने लगे हैं उनमें से किसी-किसी में बेचारे कीट्स ( Keats ) तर्क का नाम घसीय जाता है, जिनसे रहस्यवाद का नाममात्र का भी लगाव नहीं ।। अँगरेजी साहित्य का थोड़ा परिचय रखनेवाली भी जानता है कि कीट्स प्राचीन यूनानी काव्य का आदर्श लेकर नए ढंग (Rormantic) पर चले हैं जिसमें रहस्यवाद की गन्ध तक नहीं। यह दिखाया जा चुका है कि जिसमें रहस्यवाद की उत्पत्ति पैगंबरी ( Semitic ) मतो के भीतर हुई है। प्राचीन आर्य-काव्य में क्या भारत के, क्या योरप के-रहस्यवाद का नाम तक नहीं, सीधा देववाद है। कीटस की कल्पना बहुत ही तत्पर थी इससे उनमें मूर्त विधान ( Inaagery ) का विलक्षण प्राचुर्य है । वे अपने इन्द्रियार्थवाद ( Sensualisrm ) के लिए प्रसिद्ध हैं , रहस्यवाद के साथ तो उनका नाम कहीं लिया ही नहीं जाता । कहीं ईट्स के धोखे में उनका नाम न आ जाता हो ? एक दूसरी कोटि के कवि भी होते हैं जिन्हें कभी-कभी भ्रान्तिबश कुछ लोग रहस्यवादी कह दिया करते हैं। अँगरेजी कवि ब्राउनिम ( R Biovning) इसी तरह के कवि थे। उनकी कविता में बुद्धिव्यापार का बहुत योग है। विचारो की ऐसी सघनता बहुत कम कवियों में पाई जाती है। कहीं-कहीं विचारो की गति इतनी क्षिक होती है कि पाठक साथ-साथ नहीं चल पाता और उसे दुर्बोधता था अस्पष्टता का अनुभव होता है। कहीं-कहीं इसी प्रकार की अस्पष्टता की प्रतीति के कारण स्थूल दृष्टि से देखनेवालों को रहस्यवाद् का धोखा होता है । पर ब्राउसिंग की अस्पष्टता में और रहस्यवादी की बनावदी। अस्पष्टता में कौड़ी-मुहर का फर्क है। दोनों की उत्पत्ति सर्वथा भिन्न कारणों से है। एक की अस्पष्टता विचार-शृङ्खला की सघनता और जटिलता के कारण होती है और दूसरे की विचार-शृङ्खला के सर्वथा अभाव के कारण । एक मैं बुद्धितत्त्व ( Intellectual11y ) के